पहली बार जयपुर इवेंट में मिले। वो वहां के बतौर पत्रकार और मैं वहां की एंकर। ये बेमिसाल नज़्म multitalented आशुतोष साहब ने Jaipur के iconic newspaper महानगर टाइम्स के बेहतरीन रजत महोत्सव के खत्म होने के बाद, अपनी कविताओं के ख़ज़ाने से मुझे अचानक सुना डाली।
मैं goodnight बोलने आ रही थी।
न जाने किस बीते ज़माने में इनकी लिखी हुई होगी।
ना जानते, ना पहचानते। ना तैयारी किए
ना बात, ना ज़िक्र
कैसे सीधे फिर ये अल्फाज़ मानो मेरे जीवन की चुनिंदा धुन छेड़े रहे हों
दो अजनबियों की अलग अलग कहानियों से दैवीय जुड़े रहे हों
काल, देश, परिस्थिति, लम्हों के तार सैर कर
मानो इसी वक्त, इसी शाम के लिए ना जाने कबसे तैयार अमर रहे हों
जीवंत, अनंत
इस ध्वनि के सत रस, आकाशगंगा पार कालातीत, तुरीय, जैसे तैर रहे हों
मौन हो गई।
Comments