अंतर्मन की पूर्णता की अभिव्यक्ति करने की चेष्टा करना, एक प्रयत्न करना, विरोधाभासी बात प्रतीत होती है। अंतर्मन पूर्ण है और यदि हमें बृहदारण्यक उपनिषद् का शांति पाठ याद हो तो सभी कृत्यों में स्वयं आपके पूर्ण अस्तित्व की लालिमा खुद ब खुद रंग बिखेरेगी।
यदि संकल्प सही स्रोत से आते हैं प्रेम, करुणा, भक्ति, निस्वार्थ सेवा तो स्वास्थ्य और शरीर अपने में अंतर्यामी हैं, उसे आत्मिक बल मिलता रहेगा स्वस्थ कर्म करने के लिए चाहे वो देह केंद्रित (योग, प्राणायाम, टेनिस/खेल या सूर्योदय का भ्रमण) हो या मन केंद्रित (वेद, भजन, सत्संग, गीत, पशु प्रेम, सेवा)
जीवन की चुनौतियों का तो कोई आदि अंत नहीं है। बस कर्म योग के मार्ग पर निष्कपट, अनासक्त, स्वयं पर विश्वास, प्रभु पर निष्ठा भाव मन में समाय सही कार्य को उठाना है और डूब के करना है। आगे सृष्टि की रज़ा, जाने जगत, जाने विश्व की चेतना और जो सही कर्म स्वयं के कर्म पर इतनी आस्था से भरा है स्वभावतः उसका कर्म पूरा हो जाता है।
Total act.
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